शनिवार, 16 जुलाई 2016
जीवन के तीन मंत्र
☄ *आनंद में- वचन मत दीजिये*
☄ *क्रोध में - उत्तर मत दीजिये*
☄ *दुःख में - निर्णय मत लीजिये*
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💐💎 जीवन मंत्र 💎💐
१) धीरे बोलिये - शांति मिलेगी
२) अहम छोड़िये - बड़े बनेंगे
३) भक्ति कीजिए - मुक्ति मिलेगी
४) विचार कीजिए - ज्ञान मिलेगा
५) सेवा कीजिए - शक्ति मिलेगी
६) सहन कीजिए - देवत्व मिलेगा
७) संतोषी बनिए - सुख मिलेगा.
"इतना छोटा कद रखिए कि सभी आपके साथ बैठ सकें और इतना बड़ा मन रखिए कि जब आप खड़े हो जाऐं तो कोई बैठा न रह सके"
जिसने भी लिखा उम्दा लिखा
यह नदियों का मुल्क है,
पानी भी भरपूर है ।
बोतल में बिकता है,
पन्द्रह रू शुल्क है ।
यह गरीबों का मुल्क है,
जनसंख्या भी भरपूर है ।
परिवार नियोजन मानते नहीं,
नसबन्दी नि:शुल्क है ।
यह अजीब मुल्क है,
निर्बलों पर हर शुल्क है ।
अगर आप हों बाहुबली,
हर सुविधा नि:शुल्क है ।
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यह अपना ही मुल्क है,
कर कुछ सकते नहीं ।
कह कुछ सकते नहीं,
बोलना नि:शुल्क है ।
यह शादियों का मुल्क है,
दान दहेज भी खूब है ।
शादी करने को पैसा नहीं,
कोर्ट मैरिज नि:शुल्क हैं ।
:
यह पर्यटन का मुल्क है,
रेलें भी खूब हैं ।
बिना टिकट पकड़े गए तो,
रोटी-कपड़ा नि:शुल्क है ।
यह अजीब मुल्क है,
हर जरूरत पर शुल्क है ।
ढूंढ कर देते हैं लोग,
सलाह नि:शुल्क है ।
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यह आवाम का मुल्क है,
सरकार चुनने का हक है ।
वोट देने जाते नहीं,
मतदान नि:शुल्क है ।
यह शिक्षकों का मुल्क है,
पाठशालाएं भी खूब हैं ।
शिक्षकों को वेतनमान देने के पैसे नहीं,
पढ़ना,खाना,पोशाक निःशुल्क है ।
पानी भी भरपूर है ।
बोतल में बिकता है,
पन्द्रह रू शुल्क है ।
यह गरीबों का मुल्क है,
जनसंख्या भी भरपूर है ।
परिवार नियोजन मानते नहीं,
नसबन्दी नि:शुल्क है ।
यह अजीब मुल्क है,
निर्बलों पर हर शुल्क है ।
अगर आप हों बाहुबली,
हर सुविधा नि:शुल्क है ।
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कर कुछ सकते नहीं ।
कह कुछ सकते नहीं,
बोलना नि:शुल्क है ।
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दान दहेज भी खूब है ।
शादी करने को पैसा नहीं,
कोर्ट मैरिज नि:शुल्क हैं ।
:
यह पर्यटन का मुल्क है,
रेलें भी खूब हैं ।
बिना टिकट पकड़े गए तो,
रोटी-कपड़ा नि:शुल्क है ।
यह अजीब मुल्क है,
हर जरूरत पर शुल्क है ।
ढूंढ कर देते हैं लोग,
सलाह नि:शुल्क है ।
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वोट देने जाते नहीं,
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पाठशालाएं भी खूब हैं ।
शिक्षकों को वेतनमान देने के पैसे नहीं,
पढ़ना,खाना,पोशाक निःशुल्क है ।
उरुग्वे एक ऐसा देश है जिसमे औसतन हर एक आदमी के पास 4 गायें हैं.. और पुरे विश्व में वो खेती के मामले में नंबर वन हैं.. सिर्फ 33 लाख लोगों का देश है और 1 करोड़ 20 लाख गायें है|
हर एक गाय के कान पर इलेक्ट्रॉनिक चिप लगा रखी है। जिससे कौनसी गाय कहाँ पर है वो देखते रहते हैं |
एक किसान मशीन के अंदर बैठा फसल कटाई कर रहा है तो दूसरा उसे स्क्रीन पर जोड़ता है कि फसल का डाटा क्या है ?
इकठ्ठा किये हुये डाटा के जरिए किसान प्रति वर्ग मीटर की पैदावार का स्वयं विश्लेषण करता हैं ! 2005 में 33 लाख लोगों का देश 90 लाख लोगों के लिए अनाज पैदा करता था .. और आज की तारीख में 2 करोड़ 80 लाख लोगों का अनाज पैदा करता है..उरुग्वे के सफल प्रदर्शन के पीछे देश, किसानों और पशुपालकों का दशकों का अध्ययन शामिल है।
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पूरी खेती को देखने के लिए 500 कृषि इंजिनीयर लगाए गए हैं और ये लोग ड्रोन और सैटेलाइट से किसानो पर नजर रखते हैं, कि खेती का वही तरीका अपनाएं जो निर्धारित है .. याने दूध दही घी मक्खन के साथ आबादी से कई गुना ज्यादा अनाज उत्पादन.. सब अनाज, दूध, दहीं, घी, मक्खन, आराम से निर्यात होता है और हर किसान लाखों में खेलता है..
कम से कम आय एक आदमी की 1,25,000 महिनें की है यानि 19000 डॉलर सालाना !
इस देश का राष्ट्रीय चिन्ह सूर्य व राष्ट्रीय प्रगति चिन्ह गाय व घोडा हैं !!
उरूग्वे में गाय की हत्या पर तत्काल फाँसी का कानून हैं !
( सोशल मीडिया पर आधारित, सत्यता के बारे में पाठक स्वयं जांच ले )
हर एक गाय के कान पर इलेक्ट्रॉनिक चिप लगा रखी है। जिससे कौनसी गाय कहाँ पर है वो देखते रहते हैं |
एक किसान मशीन के अंदर बैठा फसल कटाई कर रहा है तो दूसरा उसे स्क्रीन पर जोड़ता है कि फसल का डाटा क्या है ?
इकठ्ठा किये हुये डाटा के जरिए किसान प्रति वर्ग मीटर की पैदावार का स्वयं विश्लेषण करता हैं ! 2005 में 33 लाख लोगों का देश 90 लाख लोगों के लिए अनाज पैदा करता था .. और आज की तारीख में 2 करोड़ 80 लाख लोगों का अनाज पैदा करता है..उरुग्वे के सफल प्रदर्शन के पीछे देश, किसानों और पशुपालकों का दशकों का अध्ययन शामिल है।
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कम से कम आय एक आदमी की 1,25,000 महिनें की है यानि 19000 डॉलर सालाना !
इस देश का राष्ट्रीय चिन्ह सूर्य व राष्ट्रीय प्रगति चिन्ह गाय व घोडा हैं !!
उरूग्वे में गाय की हत्या पर तत्काल फाँसी का कानून हैं !
( सोशल मीडिया पर आधारित, सत्यता के बारे में पाठक स्वयं जांच ले )
कृष्ण और बलराम
महाभारत काल की बात है। एक बार कृष्ण और बलराम किसी जंगल से गुजर रहे थे। चलते-चलते काफी समय बीत गया और अब सूरज भी लगभग डूबने वाला था। अँधेरे में आगे बढना संभव नहीं था, इसलिए कृष्ण बोले, “ बलराम, हम ऐसा करते हैं कि अब सुबह होने तक यहीं ठहर जाते हैं, भोर होते ही हम अपने गंतव्य की और बढ़ चलेंगे।”
बलराम बोले, “ पर इस घने जंगल में हमें खतरा हो सकता है, यहाँ सोना उचित नहीं होगा, हमें जाग कर ही रात बितानी होगी।”
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“अच्छा, हम ऐसा करते हैं कि पहले मैं सोता हूँ और तब तक तुम पहरा देते रहो, और फिर जैसे ही तुम्हे नींद आये तुम मुझे जगा देना; तब मैं पहरा दूंगा और तुम सो जाना।”, कृष्ण ने सुझाव दिया।
बलराम तैयार हो गए।
कुछ ही पलों में कृष्ण गहरी नींद में चले गए और तभी बलराम को एक भयानक आकृति उनकी ओर आती दिखी, वो कोई राक्षस था।
राक्षस उन्हें देखते ही जोर से चीखा और बलराम बुरी तरह डर गए।
इस घटना का एक विचित्र असर हुआ- भय के कारण बलराम का आकार कुछ छोटा हो गया और राक्षस और विशाल हो गया।
उसके बाद राक्षस एक बार और चीखा और पुन: बलराम डर कर काँप उठे, अब बलराम और भी सिकुड़ गए और राक्षस पहले से भी बड़ा हो गया।
राक्षस धीरे-धीरे बलराम की और बढ़ने लगा, बलराम पहले से ही भयभीत थे, और उस विशालकाय राक्षस को अपनी और आता देख जोर से चीख पड़े –“कृष्णा…” ,और चीखते ही वहीँ मूर्छित हो कर गिर पड़े।
बलराम की आवाज़ सुन कर कृष्ण उठे, बलराम को वहां देख उन्होंने सोचा कि बलराम पहरा देते-दते थक गए और सोने से पहले उन्हें आवाज़ दे दी।
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अब कृष्ण पहरा देने लगे।
कुछ देर बाद वही राक्षस उनके सामने आया और जोर से चीखा।
कृष्ण जरा भी घबराए नही और बोले, “बताओ तुम इस तरह चीख क्यों रहे हो, क्या चाहिए तुम्हे?”
इस बार भी कुछ विच्त्र घटा- कृष्ण के साहस के कारण उनका आकार कुछ बढ़ गया और राक्षस का आकर कुछ घट गया।
राक्षस को पहली बार कोई ऐसा मिला था जो उससे डर नहीं रहा था। घबराहट में वह पुन: कृष्ण पर जोर से चीखा!
इस बार भी कृष्ण नहीं डरे और उनका आकर और भी बड़ा हो गया जबकि राक्षस पहले से भी छोटा हो गया।
एक आखिरी प्रयास में राक्षस पूरी ताकत से चीखा पर कृष्ण मुस्कुरा उठे और फिर से बोले, “ बताओ तो क्या चाहिए तुम्हे?”
फिर क्या था राक्षस सिकुड़ कर बिलकुल छोटा हो गया और कृष्ण ने उसे हथेली में लेकर अपनी धोती में बाँध लिया और फिर कमर में खोंस कर रख लिया।
कुछ ही देर में सुबह हो गयी, कृष्ण ने बलराम को उठाया और आगे बढ़ने के लिए कहा! वे धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे तभी बलराम उत्तेजित होते हुए बोले, “पता है कल रात में क्या हुआ था, एक भयानक राक्षस हमे मारने आया था!”
“रुको-रुको”, बलराम को बीच में ही टोकते हुए कृष्ण ने अपनी धोती में बंधा राक्षस निकाला और बलराम को दिखाते हुए बोले, “कहीं तुम इसकी बात तो नहीं कर रहे हो?”
“हाँ, ये वही है। पर कल जब मैंने इसे देखा था तो ये बहुत बड़ा था, ये इतना छोटा कैसे हो गया?”, बलराम आश्चर्यचकित होते हुए बोले।
कृष्ण बोले, “ जब जीवन में तुम किसी ऐसी चीज से बचने की कोशिश करते हो जिसका तुम्हे सामना करना चाहिए तो वो तुमसे बड़ी हो जाती है और तुम पर नियंत्रण करने लगती है लेकिन जब तुम उस चीज का सामना करते हो जिसका सामना तुम्हे करना चाहिए तो तुम उससे बड़े हो जाते हो और उसे नियंत्रित करने लगते हो!”
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दोस्तों, ये राक्षस दरअसल, हमारी life में आने वाले challenges हैं, विपरीत स्थितियां हैं, life problems हैं! अगर हम इन situations को avoid करते रहते हैं तो ये समस्याएं और भी बड़ी होती चली जाती हैं और ultimately हमें control करने लगती हैं लेकिन अगर हम इनका सामना करते हैं, courage के साथ इन्हें face करते हैं तो यही समस्याएं धीरे-धीरे छोटी होती चली जाती हैं और अंततः हम उनपर काबू पा लेते हैं। इसलिए जब कभी भी life में ऐसी problems आएं जिनका सामना आपको करना ही चाहिए तो उसे अवॉयड मत करिए…जिसे फेस करना है उसे फेस करिए, उससे बचने की कोशिश मत करिए, जब आप ऐसा करेंगे तो देखते-देखते ही वे समस्याएं इतनी छोटी हो जायेंगी कि आप आराम से उनपर नियंत्रण कर सकेंगे और उन्हें हेमशा-हमेशा के लिए ख़त्म कर सकेंगे!
बलराम बोले, “ पर इस घने जंगल में हमें खतरा हो सकता है, यहाँ सोना उचित नहीं होगा, हमें जाग कर ही रात बितानी होगी।”
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“अच्छा, हम ऐसा करते हैं कि पहले मैं सोता हूँ और तब तक तुम पहरा देते रहो, और फिर जैसे ही तुम्हे नींद आये तुम मुझे जगा देना; तब मैं पहरा दूंगा और तुम सो जाना।”, कृष्ण ने सुझाव दिया।
बलराम तैयार हो गए।
कुछ ही पलों में कृष्ण गहरी नींद में चले गए और तभी बलराम को एक भयानक आकृति उनकी ओर आती दिखी, वो कोई राक्षस था।
राक्षस उन्हें देखते ही जोर से चीखा और बलराम बुरी तरह डर गए।
इस घटना का एक विचित्र असर हुआ- भय के कारण बलराम का आकार कुछ छोटा हो गया और राक्षस और विशाल हो गया।
उसके बाद राक्षस एक बार और चीखा और पुन: बलराम डर कर काँप उठे, अब बलराम और भी सिकुड़ गए और राक्षस पहले से भी बड़ा हो गया।
राक्षस धीरे-धीरे बलराम की और बढ़ने लगा, बलराम पहले से ही भयभीत थे, और उस विशालकाय राक्षस को अपनी और आता देख जोर से चीख पड़े –“कृष्णा…” ,और चीखते ही वहीँ मूर्छित हो कर गिर पड़े।
बलराम की आवाज़ सुन कर कृष्ण उठे, बलराम को वहां देख उन्होंने सोचा कि बलराम पहरा देते-दते थक गए और सोने से पहले उन्हें आवाज़ दे दी।
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अब कृष्ण पहरा देने लगे।
कुछ देर बाद वही राक्षस उनके सामने आया और जोर से चीखा।
कृष्ण जरा भी घबराए नही और बोले, “बताओ तुम इस तरह चीख क्यों रहे हो, क्या चाहिए तुम्हे?”
इस बार भी कुछ विच्त्र घटा- कृष्ण के साहस के कारण उनका आकार कुछ बढ़ गया और राक्षस का आकर कुछ घट गया।
राक्षस को पहली बार कोई ऐसा मिला था जो उससे डर नहीं रहा था। घबराहट में वह पुन: कृष्ण पर जोर से चीखा!
इस बार भी कृष्ण नहीं डरे और उनका आकर और भी बड़ा हो गया जबकि राक्षस पहले से भी छोटा हो गया।
एक आखिरी प्रयास में राक्षस पूरी ताकत से चीखा पर कृष्ण मुस्कुरा उठे और फिर से बोले, “ बताओ तो क्या चाहिए तुम्हे?”
फिर क्या था राक्षस सिकुड़ कर बिलकुल छोटा हो गया और कृष्ण ने उसे हथेली में लेकर अपनी धोती में बाँध लिया और फिर कमर में खोंस कर रख लिया।
कुछ ही देर में सुबह हो गयी, कृष्ण ने बलराम को उठाया और आगे बढ़ने के लिए कहा! वे धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे तभी बलराम उत्तेजित होते हुए बोले, “पता है कल रात में क्या हुआ था, एक भयानक राक्षस हमे मारने आया था!”
“रुको-रुको”, बलराम को बीच में ही टोकते हुए कृष्ण ने अपनी धोती में बंधा राक्षस निकाला और बलराम को दिखाते हुए बोले, “कहीं तुम इसकी बात तो नहीं कर रहे हो?”
“हाँ, ये वही है। पर कल जब मैंने इसे देखा था तो ये बहुत बड़ा था, ये इतना छोटा कैसे हो गया?”, बलराम आश्चर्यचकित होते हुए बोले।
कृष्ण बोले, “ जब जीवन में तुम किसी ऐसी चीज से बचने की कोशिश करते हो जिसका तुम्हे सामना करना चाहिए तो वो तुमसे बड़ी हो जाती है और तुम पर नियंत्रण करने लगती है लेकिन जब तुम उस चीज का सामना करते हो जिसका सामना तुम्हे करना चाहिए तो तुम उससे बड़े हो जाते हो और उसे नियंत्रित करने लगते हो!”
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रावण का चमत्कार या राम का...पावर...?? ( एक हास्य रस का सस्पेँश कथा )
श्री राम के नाम से पत्थरो के तैरने की news जब लंका पहुँची , तब वहाँ की public में काफी gossip हुआ कि भैया जिसके नाम से ही पत्थर तैरने लगें, वो आदमी क्या गज़ब होगा।
इस तरह की बेकार की अफ़वाहों से परेशान रावण ने तैश में आकरannounce करवा दिया कि कल रावण
के नाम लिखे हुए पत्थर भी पानी में तिराये जायेंगे।
और अगले दिन लंका में public holiday declare कर दिया गया। निश्चित दिन और समय पर सारी population
रावण का चमत्कार देखने पहुँच गयी।
Set time पर रावण अपने भाई - बँधुओं , पत्नियों तथा staff के साथ वहाँ पहुँचे और एक भारी से पत्थर पर उनका नाम लिखा गया।
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Labor लोगों ने पत्थर उठाया और उसे समुद्र में डाल दिया -- पत्थर सीधा पानी के भीतर !
सारी public इस सब को साँस रोके देख रहे थी जबकी रावण लगातार मन ही मन में मँत्रोच्चारण कर रहे थे।
अचानक, पत्थर वापस surface पर आया और तैरने लगा। Public पागल हो गयी , और 'लँकेश की जय' के कानफोड़ू नारों ने आसमान को गुँजायमान कर दिया।
एक public celebration के बाद रावण अपने लाव लश्कर के साथ वापस अपने महल चले गये और public को भरोसा हो गया कि ये राम तो बस ऐसे ही हैं पत्थर तो हमारे महाराज रावण के नाम से भी तिरते हैं।
पर उसी रात को मँदोदरी ने notice किया कि रावण bed में लेटे हुए बस ceiling को घूरे जा रहे थे।
“ क्या हुआ स्वामी ? फिर से acidity के कारण नींद नहीं आ रही क्या ?” eno दराज मे पडी है ले कर आऊँ ? - मँदोदरी ने पूछा।
मँदु ! रहने दो , आज तो इज़्ज़त बस लुटते लुटते बच गयी। आइन्दा से ऐसे experiment नहीं करूंगा। " ceiling को लगातार घूर रहे रावण ने जवाब दिया।
मँदोदरी चौंक कर उठी और बोली , “ऐसा क्या हो गया स्वामी ?”
रावण ने अपने सर के नीचे से हाथ निकाला और छाती पर रखा , “ वो आज सुबह याद है पत्थर तैरा था ?”
मँदोदरी ने एक curious smile के साथ हाँ मे सर हिलाया।
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पत्थर जब पानी में नीचे गया था , उसके साथ साथ मेरी साँस भी नीचे चली गयी थी। रावण ने कहा।
इसपर confused मँदोदरी ने कहा , पर पत्थर वापस ऊपर भी तो आ गया था ना । वैसे ऐसा कौन सा मँत्र पढ़ रहे थे आप जिससे पानी में नीचे गया पत्थर वापस आकर तैरने लगा ?”
इस पर रावण ने एक लम्बी साँस ली और बोले , मँत्र-वँत्र कुछ नहीं पढ़ रहा था बल्कि बार बार बोल रहा था कि
हे पत्थर ! तुझे राम की कसम, PLEASE डूबियो मत भाई !! "
.
राम नाम मेँ है दम !!
बोलो
जय श्री राम !!
चरित्र ( Kahani )
एक नगर में रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था।
एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस मे चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए।
कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हे रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए है। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा।
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है, बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।
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मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, "भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।"
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, "क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?"
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, "मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो! अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए"
बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
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पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे। उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया, "प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी। पर तूने सही समय पर मुझे सम्हलने का अवसर दे दिया।"
दोस्तो...!
कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूंजी दांव पर लगा देते है।
एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस मे चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए।
कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हे रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए है। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा।
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है, बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।
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मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, "भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।"
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, "क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?"
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, "मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो! अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए"
बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
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पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे। उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया, "प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी। पर तूने सही समय पर मुझे सम्हलने का अवसर दे दिया।"
दोस्तो...!
कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूंजी दांव पर लगा देते है।
दोषी कौन ? (कहानी)
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।
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ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
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फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
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बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।
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ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
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फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
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बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....
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