सोमवार, 13 फ़रवरी 2012
काश होता ... राजेश सिंह
काश होता घर तुम्हारा, ‘‘राज’’ घर के पास मेरे ।
जब कभी तुम आ न पाती, सुन लेता आवाज ही।।
काश होता इश्क तुमको, मौसम-ए-बहार से ।
जब कभी घर से निकलती, मैं भी तुमको देख लेता।।
काश होता घर में मेरे, फूलों की बगियां हंसी ।
फूल चुनने तुम जो आती, मैं भी तुमको देख लेता।।
काश होता तुमको भी, गजलें गुनगुनाने का शौंक।
तुमको अपनी गजलें देकर, सुन लेता आवाज भी ।।
काश होता तुमको भी, सजने संवरने का जो शौक ।
जब सामान लेने जाती, मैं भी तुमको देख लेता ।।
काश होता, जिंदगी के, रास्ते सब एक होते ।
साथ चलने के बहाने, मैं भी तुमको देख लेता।।
काश होता लड़ने को ही, तुम जो मेरे पास आती।
जब कभी तुम गाली देती, सुन लेता आवाज ही।।
काश होता तुम हमारे, साथ ही पढ़ती कभी ।
साथ पढ़ने के बहाने, मैं भी तुमको देख लेता।।
काश होता भाई तेरा, मेरे ही हम उम्र का ।
उसको बुलाने के बहाने, मैं भी तुमको देख लेता।।
काश होता तुमको भी, प्यार जो मुझसे कभी ।
जब कभी इजहार करती, सुन लेता आवाज ही।।
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