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बुधवार, 18 जुलाई 2012

काका के जाने से पाकिस्तानियों की पलकें नम और भी...

राजेश खन्ना की शख्सियत सरहदों से परे थी और उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में यह बात साबित भी हुई. यहां लोगों ने हिंदी सिनेमा में रोमांस के इस बादशाह के इंतकाल पर गम का इजहार किया.
पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने खन्ना के निधन पर जारी अपने शोक संदेश में कहा, ‘राजेश खन्ना एक महान कलाकार थे, जिनका फिल्म और कला के क्षेत्र में योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.’ अशरफ ने कहा, ‘राजेश खन्ना की सीमा के पार भी बड़ी संख्या में चाहने वाले थे. लोग उनकी बेहतरीन अदाकारी को बेहद पसंद करते थे.’
यहां के समाचार चैनलों ने भी खन्ना के निधन से जुड़ी खबरें दिखाईं. खन्ना का मुंबई में निधन हो गया. पाकिस्तान के प्रमुख समाचार चैनल ‘जियो न्यूज’ ने खन्ना को श्रद्धांजलि देते हुए करीब एक घंटे का कार्यक्रम प्रसारित किया.
गायक और अभिनेता अली जफर ने टिव्टर पर लिखा, ‘राजेश खन्ना अलविदा. उनकी फिल्मों और गीतों से कई यादें जुड़ी हैं.’ यहां के मशहूर अभिनेता सैयद नूर ने कहा, ‘राजेश खन्ना इस उपमहाद्वीप के इतने बड़े कलाकार थे कि उन्हें लोगों आने वाले कई वर्षों याद रखेंगे.’
अभिनेत्री मीरा ने ट्विटर पर कहा, ‘राजेश खन्ना एक बड़ी शख्सियत थे. यह फिल्म उद्योग के लिए बड़ा नुकसान है.’ पाकिस्तानी मोहम्मद हनीफ और बड़ी संख्या में माइक्रो-ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग वेसाइट के जरिए राजेश खन्ना को याद किया. एक पाकिस्तानी लेखक ने कहा, ‘हिंदी सिनेमा का पहला गाना मुझे ‘ये शाम मस्तानी’ याद हुआ था. यह राजेश खन्ना की फिल्म से था.’

राजेश खन्ना को इन गानों ने बनाया यादगार स्टार

राजेश खन्ना को सुपरहिट बनाने में उनकी अदाकारी ही उनकी फिल्मों के गाने भी अहम थे। संगीतकार आर. डी. बर्मन के संगीत और गायक किशोर कुमार की आवाज ने राजेश खन्ना को बुलंदी पर पहुंचाने में काफी मदद की। बर्मन, किशोर और राजेश खन्ना ने 30 फिल्मों में एक साथ काम किया। 

राजेश खन्ना पर एक से बढ़कर एक गाने फिल्माए गए जो सुपरहिट साबित हुए। राजेश को ज्यादातर रोमांटिक गाने मिले जो हर किसी के दिल में घर कर गए। राजेश की अदाएं इन गानों में देखते ही बनती है। 

आज भी राजेश खन्ना पर फिल्माए गए गाने बड़े शौक से सुने जाते हैं। किशोर कुमार की आवाज राजेश खन्ना पर पूरी तरह फिट बैठती थी। पेश हैं राजेश खन्ना पर फिल्माए गए खास गाने। 

1 मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू (फिल्म - आराधना)

2 रूप तेरा मस्ताना (फिल्म - आराधना)

3 कोरा कागज था ये मन मेरा... (फिल्म - आराधना)

4 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय...' (फिल्म - आनंद)

5 मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने... (फिल्म - आनंद)

6 कहीं दूर जब दिन ढल जाए... (फिल्म - आनंद)

7 जय जय शिव शंकर... (फिल्म - आप की कसम)

8 करवटें बदलते रहे सारी रात हम... (फिल्म - आप की कसम)

9 वो शाम कुछ अजीब थी... (फिल्म - खामोशी)

10 यहां वहां सारे जहां में... (फिल्म - आन मिलो सजना)

11 अच्छा तो हम चलते हैं... (फिल्म - आन मिलो सजना)

12 ये जो मोहब्बत है... (फिल्म - कटी पतंग)

13 ये शाम मस्तानी... (फिल्म - कटी पतंग)

14 प्यार दीवाना होता है... (फिल्म - कटी पतंग)

15 जिंदगी का सफर... (फिल्म - सफर)

16 जीवन से भरी तेरी आंखें... (फिल्म - सफर)

17 जिंदगी प्यार का गीत है... (फिल्म - सौतन)

18 शायद मेरी शादी का खयाल... (फिल्म - सौतन)

19 हमें और जीने की चाहत न होती अगर तुम न होते... (अगर तुम न होते)

20 चला जाता हूं... (फिल्म - मेरे जीवन साथी)

21 चिंगारी कोई भड़के... (फिल्म - अमर प्रेम)

22 कुछ तो लोग कहेंगे... (फिल्म - अमर प्रेम)

23 ये क्या हुआ... (फिल्म - अमर प्रेम)

24 दीये जलते हैं... (फिल्म - नमक हराम)

25 मैं शायर बदनाम... (फिल्म - नमक हराम)

26 दिल सच्चा और चेहरा झूठा... (फिल्म - सच्चा झूठा)

27 मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया... (फिल्म - सच्चा झूठा)

28 गोरे रंग पे ना इतना... (फिल्म - रोटी)

29 यार हमारी बात सुनो... (फिल्म - रोटी)

30 हमें तुमसे प्यार कितना... (फिल्म - कुदरत)

31 कभी बेकसी ने मारा... (फिल्म - अलग अलग)

32 मेरे दिल में आज क्या है... (फिल्म - दाग)

33 मेरे नैना सावन भादो... (फिल्म - मेहबूबा)

34 ओ मेरे दिल के चैन... (फिल्म - मेरे जीवन साथी)

35 दीवाना लेके आया है... (फिल्म - मेरे जीवन साथी)

राजेश खन्ना के फोटो से शादी कर ली थी लड़कियों ने

नवभारत टाईम्स की खबर में कहा गया है कि
किसी जमाने में करोडों जवां दिलों की धड़कन रहे हिंदी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना ने ऐक्टिंग के अलावा फिल्म प्रॉडक्शन और नेता के रूप में भी लोकप्रियता हासिल की।

ऐक्टर के रूप में उनकी लोकप्रियता का यह आलम था कि बड़े-बड़े स्टार उनकी चमक के सामने फीके पड़ गए थे। वह बॉलिवुड के पहले ऐसे ऐक्टर थे, जिन्हें देखने के लिए लोगों की कतारें लग जाती थीं और युवतियां तो अपने खून से उन्हें चिट्ठी लिखा करती थीं। किस्से मशहूर हैं कि कई लड़कियों ने राजेश खन्ना के फोटो से शादी कर ली थी। उन्होंने कुल 163 फिल्मों में काम किया जिनमें 106 फिल्मों में वह हीरो रहे और 22 फिल्मों में उन्होंने को-ऐक्टर की भूमिका अदा की। इसके अलावा उन्होंने 17 शॉर्ट फिल्मों में भी काम किया।

काका के नाम से मशहूर राजेश खन्ना ने बेस्ट ऐक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार तीन बार हासिल किया और 14 बार वह इस अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुए। उन्होंने बेस्ट ऐक्टर के लिए बीएफजेए अवॉर्ड चार बार पाया और 25 बार वह इसके लिए नॉमिनेट किए गए। उन्हें 2005 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।

राजेश खन्ना ने अपना फिल्मी सफर 'आखिरी खत' फिल्म से शुरू किया और राज, बहारों के सपने, इत्तेफाक और आराधना जैसी फिल्मों से वह उस मुकाम तक पहुंचे। जहां शायद ही कोई अभिनेता पहुंच पाए। एक खास अदा के साथ पलकें झपकाते हुए मुस्कराकर अपने प्रेम का इजहार करते रोमांटिक हीरो की उनकी छवि के दीवाने आज भी बहुत हैं। कुछ दूसरे अभिनेताओं ने उनकी इस अदा की कॉपी करने की कोशिश की लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए।

काका के नाम से मशहूर राजेश खन्ना ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार तीन बार हासिल किया और चौदह बार वह इस पुरस्कार के नामांकित हुए। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए बीएफजेए पुरस्कार चार बार प्राप्त किया और 25 बार वह इसके लिए नामांकित किए गए। उन्हें 2005 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।

29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था। 1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में 'आखिरी खत' नामक फिल्म में काम किया था। इसके बाद 'राज', 'बहारों के सपने', 'औरत के रूप' जैसी कई फिल्में उन्होंने की लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में 'आराधना' से मिली। इसके बाद एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया।
1971 में राजेश खन्ना ने 'कटी पतंग', 'आनन्द', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी', 'अंदाज' नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराए रखा। बाद के दिनों में 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवन साथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमक हराम', 'हमशक्ल' जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा। बाद में वह राजनीति में आए और 1991 में वह नई दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए।
राजेश खन्ना उस मुकाम तक पहुंचे, जहां शायद ही कोई ऐक्टर पहुंच पाए। एक खास अदा के साथ पलकें झपकाते हुए मुस्कुराकर अपने प्रेम का इजहार करते रोमांटिक हीरो की उनकी छवि के दीवाने आज भी बहुत हैं। कुछ दूसरे ऐक्टर्स ने उनकी इस अदा की कॉपी करने की कोशिश की लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए।

दोबारा जन्‍म हो तो राजेश खन्‍ना ही बनूं, वही गलतियां करूं


राजेश खन्ना की मौत के बाद दैनिक भास्कर ने लिखा है
एक अद्भुत सुपरस्टार....शानदार एक्टर...लाखों दिलों पर राज करने वाला एक ऐसा कलाकार, जिसने किसी फिल्म के हिट होने के मायने ही बदल दिए...गुमनाम सी बीमारी के बाद चला गया...अंतिम समय में डिंपल का हाथ पकड़कर उनकी आंखों में शायद अतीत घूमा होगा...उन गलतियों की याद आई होगी जो अकल्पनीय स्टारडम के दौर में जाने-अनजाने में उनसे हुई होंगी..., असफलताओं का दंश भी चुभा होगा....लेकिन न गलतियों से सीखने की कोई चाहत उनके अंदर थी, न असफलताओं ने उनके अंदर का फौलाद खत्म किया था,...इसलिए तो उनके भीतर का राजेश खन्ना खम ठोंककर कहता है...अगर मुझे दोबारा जन्म मिले तो मैं राजेश खन्ना ही बनना चाहूंगा, वहीं गलतियां फिर से दोहराना चाहूंगा, आनंद रोता नहीं है...उसे आंसुओं से चिढ़ है...बाबू मोशाय....
राजेश खन्ना की फिल्‍मों, गानों के साथ हम दे रहे हैं इस शख्सियत को अपनी आदरांजलि...आप भी अपने श्रद्धांजलि नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जाकर दे सकते हैं।
राजेश खन्ना की टॉप फिल्में
सुपरस्टार राजेश खन्ना ने 1966 से 2011 के बीच 160 से ज्‍यादा फिल्मों में काम किया। उनकी कुछ सबसे यादगार फिल्‍में:  बंधन (1969)नरेंद्र बेदी के निर्देशन में बनी 'बंधन'  से राजेश खन्ना ने रुपहले पर्दे पर एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित की। उनके साथ मुमताज ने भी कमाल का अभिनय किया था।  
आराधना (1969)शक्ति सामंत के निर्देशन में बनी फिल्म 'आराधना' में राजेश खन्ना ने एक पायलट की भूमिका निभाई। पर्दे पर राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर के रोमांस ने कामयाबी की नई कहानी लिखी। फिल्म इतनी कामयाब हुई कि इसे बंगाली में डब भी किया गया और तमिल व तेलुगु में रीमेक भी बने। दोनों ही रीमेक में शर्मिला टैगोर ने ही काम किया था। आनंद (1971)
हृषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी 'आनंद' में राजेश खन्ना ने गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज का टाइटल रोल निभाया था। वह मौत से पहले अपनी जिंदगी को खुल कर जीना चाहता है। आनंद के इसी अंदाज के दर्शक दीवाने हो जाते हैं। अमिताभ के साथ की गई राजेश खन्ना की यह फिल्‍म भी ब्लॉकबस्टर साबित हुई।  बाबर्ची (1972)
हृषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म 'बाबर्ची' में भी राजेश खन्ना टाइटल रोल में थे। उन्‍होंने अपने किरदार से इस फिल्म को भी अमर कर दिया। फिल्म तो सुपरहिट हुई ही। 
अमर प्रेम (1972)शक्ति सामंत निर्देशित इस फिल्म में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने लोगों को अपना दीवाना बना दिया था। सुजीत कुमार और बिंदू ने भी फिल्म में अहम किरदार निभाया था। राजेश खन्ना के बेहद लोकप्रिय डॉयलाग- 'पुष्पा...आई हेट टियर्स' इसी फिल्म से है। 'अमर प्रेम' बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी और इसे भारतीय सिनेमा की सबसे यादगार फिल्मों में शुमार किया जाता है। फिल्म में राजेश खन्ना के रोल को न सिर्फ दर्शकों ने पसंद किया था बल्कि उनकी अदाकारी के चर्चों से अखबार और फिल्मी पत्रिकाएं भी भर गई थीं।  
आविष्कार (1974)बसु भट्टाचार्य निर्देशित इस फिल्म में एक बार फिर राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी दिखी। फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इसे भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ क्लासिक फिल्मों में शुमार किया जाता है।  
आप की कसम (1974)ओम प्रकाश निर्देशित इस फिल्म में राजेश खन्ना ने मुमताज के शक्की पति का किरदार निभाया था। संजीव कुमार ने राजेश खन्ना के दोस्त का किरदार किया था। यह भी ब्लॉकबस्टर ही साबित हुई।  
  टॉप 10 गाने...राजेश खन्ना को पर्दे पर उनके गीतों के लिए भी याद किया जाएगा। बॉलीवुड के कई अमर गीत उनपर ही फिल्माए गए। यहां एक क्लिक में देखिए राजेश खन्ना के दस टॉप गीत। 1976-1978 तक बॉक्स ऑफिस पर रहे फ्लॉप
1976 से 1978 के बीच राजेश खन्ना की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। इस दौरान उनके अभिनय की तो तारीफ हुई लेकिन फिल्में कमाल नहीं कर सकी। राजेश खन्ना की फिल्म  'बंडलबाज' (1976) बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ 25 लाख रुपए ही कमा सकी। इसके बाद आई 'महबूबा' ने भी 25 लाख रुपए का ही कारोबार किया। 1977 में आई 'अनुरोध' और 'कर्म' भी बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर सकी। राजेश खन्ना ने इसके बाद फिल्म 'छैला बाबू' की लेकिन वो भी उनके जादू को वापस नहीं ला सकी। 'अमर दीप' से राजेश खन्ना ने एक बार फिर बॉक्स ऑफिस पर वापसी की। (सुनिए 1987 में बीबीसी द्वारा लिया गया राजेश खन्‍ना का इंटरव्यूपर्दे पर काका के साथ हिट जोड़ीराजेश इंडस्ट्री में हमेशा ही एक जिंदादिल रोमैंटिक हीरो के रूप में याद किए जाएंगे। फिल्मों में राजेश की एक नहीं, बल्कि कई हीरोइनों के साथ हिट जो़ड़ियांबनीं थीं।  टॉप डॉयलाग और सीन 
राजेश खन्ना तो चले गए लेकिन उनकी अदाकारी और डॉयलाग बोलने का एक खास अंदाज हमेशा जिंदा रहेगा। राजेश खन्ना की अदाओं के साथ-साथ उनके डॉयलाग्स भी लोगों के दिलों दिमाग पर छा जाते थे। 

राजेश खन्ना की जिंदगी का सफर

नवभारत टाईम्स की खबर में कहा गया है कि

राजेश खन्ना को ऐसे ही सुपर स्टार नहीं कहा जाता था। लोग इस कदर उनके दीवाने थे कि बाजारों में युवतियां पागलों की तरह उनकी कार को चूमती थीं और कार पर लिपस्टिक के दाग ही दाग होते थे। युवतियां उन्हें अपने खून से लिखे खत भेजा करती थीं। राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी, वैसी पहले या बाद में कभी नहीं दिखी।

जतिन बन गया राजेश 
29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना की परवरिश उनके दत्तक माता-पिता ने की। उनका नाम पहले जतिन खन्ना था। स्कूली दिनों से ही उनका झुकाव अभिनय की ओर था और उन्होंने कई नाटकों में ऐक्टिंग की। सपनों के पंख लगने की उम्र आई, तो उन्होंने फिल्मों की राह पकड़ने का फैसला किया। यह दौर उनकी जिंदगी की नई इबारत लिखकर लाया और उनके चाचा ने उनका नाम जतिन से बदलकर राजेश कर दिया। इस नाम ने न केवल उन्हें शोहरत दी, बल्कि यह नाम हर युवक और युवती के जेहन में अमर हो गया।

आया 'काका' का दौर 
1965 में राजेश खन्ना ने यूनाइटेड प्रड्यूर्स ऐंड फिल्मफेयर के प्रतिभा खोज अभियान में बाजी मारी। उनकी पहली फिल्म चेतन आनंद निर्देशित 'आखिरी खत' थी। दूसरी फिल्म मिली 'राज' भी प्रतियोगिता जीतने का ही पुरस्कार थी। उस दौर में दिलीप कुमार और राज कपूर के अभिनय का डंका बजता था, किसी को अहसास भी नहीं था कि एक 'नया सितारा' शोहरत की बुलंदियां छूने के लिए बढ़ रहा है। राजेश खन्ना ने 'बहारों के सपने', 'औरत', 'डोली' और 'इत्तेफाक' जैसी शुरुआती सफल फिल्में दीं, लेकिन 1969 में आई 'आराधना' ने बॉलिवुड में 'काका' के दौर की शुरुआत कर दी। 'आराधना' में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का ऐसा चित्रण किया कि युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी और 'काका' प्रेम का नया प्रतीक बन गए।

किशोर बन गए आवाज
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आराधना' से किशोर कुमार जैसे गायक को भी बॉलिवुड में स्थापित होने का मौका मिला और फिर वह राजेश खन्ना के गीतों की आवाज बन गए। अदाकारी और आवाज की इस जुगलबंदी ने बॉलिवुड को 'मेरे सपनों की रानी', 'रूप तेरा मस्ताना', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'जय जय शिवशंकर' और 'जिंदगी कैसी है पहेली' जैसे कालजयी गाने दिए। 'आराधना' और 'हाथी मेरे साथी' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया, जिनमें 106 फिल्मों को उन्होंने सिर्फ अपने दम पर सफलता दिलाई, 22 फिल्मों में उनके साथ उनकी टक्कर के अन्य नायक भी थे।

आज तक नहीं टूटा रेकॉर्ड 
राजेश खन्ना ने 1969 से 1972 के बीच लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं। इस रेकॉर्ड को आज तककोई नहीं तोड़ पाया, इसके बाद बॉलिवुड में 'सुपरस्टार' का आगाज हुआ। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठअभिनेता के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। इस पुरस्कार के लिए उनका 14 बार नामांकनहुआ। उन्हें 2005 में 'फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट' अवॉर्ड दिया गया। रोमांटिक छवि केबावजूद उन्होंने विविधतापूर्ण रोल किए, जिनमें लाइलाज बीमारी से जूझता आनंद, 'बावर्ची' काखानसामा, 'अमर प्रेम' का अकेला पति और 'खामोशी' के मानसिक रोगी की भूमिका थी। बॉलिवुडका यह स्वर्णिम दौर था और राजेश खन्ना की अदाकारी के लिए यह सोने पर सुहागा साबित हुआऔर उन्हें अपने समय के कला पारखियों के साथ काम करने का मौका मिला।

एक से एक हिट फिल्में
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अमर प्रेम' और 'आप की कसम' जैसी फिल्मों में राजेश खन्ना की शर्मिला टैगोर और मुमताज केसाथ ऐसी 'केमेस्ट्री' बनी कि इन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनकी प्रतिभा को शक्ति सामंत, यशचोपड़ा, मनमोहन देसाई, ऋषिकेश मुखर्जी, रमेश सिप्पी ने और निखारा। आर. डी. बर्मन औरकिशोर कुमार के साथ उन्होंने 30 से अधिक फिल्मों में काम किया। राजेश खन्ना की फिल्में1976-78 के दौरान पहले सी सफलता हासिल नहीं कर पाईं। 1978 के बाद उन्होंने 'फिर वही रात', 'दर्द', 'धनवान', 'अवतार' और 'अगर तुम ना होते' जैसी फिल्में कीं, जो कमाई के लिहाज से सफलनहीं थीं, लेकिन आलोचकों ने जरूर सराहा।

सुपरस्टार के सुपर अफेयर 
उनके व्यक्तित्व ने न केवल प्रशंसकों को दीवाना बनाया, बल्कि सुनहरे दिनों में अभिनेत्रियों पर भीउनका जादू चला। 70 के दशक में पहले उनका अंजू महेंद्रू के साथ अफेयर चला, फिर 1973 मेंउन्होंने अपने से 15 साल छोटी डिंपल कपाडि़या से शादी कर ली। उनकी दो बेटियां ट्विंकल औररिंकी हैं, डिंपल कपाडि़या 1984 में राजेश खन्ना से अलग हो गईं। हालांकि, उन्होंने कभीऔपचारिक रूप से तलाक नहीं लिया। राजेश खन्ना का नाम 'सौतन' की नायिका टीना मुनीम सेभी जुड़ा। इस जोड़ी ने 'फिफ्टी फिफ्टी', 'बेवफाई', 'सुराग', 'इंसाफ मैं करूंगा' तथा 'अधिकार' जैसीफिल्में दीं।

सांसद राजेश खन्ना 
1992 से लेकर 1996 तक राजेश खन्ना लोकसभा के सदस्य रहे। वह कांग्रेस के टिकट पर नईदिल्ली सीट से जीते थे। जब वह सांसद थे, तो उन्होंने अपना पूरा समय राजनीति को दिया औरअभिनय की पेशकशों को ठुकरा दिया। उन्होंने वर्ष 2012 के आम चुनाव में भी पंजाब में कांग्रेस केलिए चुनाव प्रचार किया था।

'काका और किशोर दो जिस्म एक जान थे'

राजेश खन्ना से जुड़ी यादों को साझा करते हुए नवभारत टाईम्स ने लिखा है

लीना चंदावरकर 
किशोरजी (किशोर कुमार-लीना चंदावरकर के पति) जल्दी से किसी से सोशलाइज नहीं होते थे, लेकिन काका के साथ उनका दो जिस्म और एक जान का रिश्ता था। काका अक्सर हमारे घर पर आते थे और किशोरजी के साथ बहुत मजाक मस्ती करते रहते थे।

अमित (किशोर के बेटे) से भी उनका बहुत लगाव था। किशोरजी भी अक्सर कहते थे कि मुझे यह लगता ही नहीं कि मैं किसी और को अपनी आवाज दे रहा हूं। मुझे यही लगता है कि मैं खुद गा रहा हूं। किशोरजी के कई कालजयी गाने काका के हिस्से आए थे। वहीं काका भी यही कहते थे कि 'किशोर दा की आवाज तो मेरी ही आवाज है।'

मैंने भी काका के साथ कुछ फिल्मों में काम किया है। वे बहुत अच्छे को-स्टार रहे हैं। सेट पर वे हमेशा फुल ऑफ लाइफ और एनर्जी रहते थे। उनके साथ आल टाइम फेवरिट 'महबूब की मेहंदी' फिल्म में काम किया। उनके साथ मेरी आखिरी फिल्म थी 'ममता की छांव'। जब किशोरदा की मौत हुई तो काका घर पर आए और बच्चों की तरह उनकी तस्वीर के सामने फूट-फूट कर रोने लगे। उनकी तस्वीर से बातें करने लगे कि आपको इस तरह नहीं जाना चाहिए था। काका की बातों और उनके स्वभाव में बनावट बिलुकल नहीं थी। वे एक जिंदादिल इंसान और सच्चे सुपरस्टार के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे।


खाने-पीने के शौकीन थे काकाः आशा पारीख
मैंने उनके साथ बहुत सी हिट फिल्में दी हैं। उनकी स्टारडम के जलवे अपनी आंखों से देखे हैं। किस तरह लड़कियां उनके प्यार में पागल रहती थीं। वे बहुत ही जॉविअल इंसान थे। यही नहीं, उन्हें खाने-पीने का भी बहुत शौक था। डायटिंग करने वाले लोगों को तो वे खास तौर पर कहते कि 'खा लो, खा लो। वरना जब डॉक्टर कहेंगे तब खाओगे!'

जब भी वे फिल्म के सेट पर आते तो उनके लिए मिठाई का इंतजाम होना बहुत जरूरी था। वे मिठाई जरूर खाते थे। अगर कभी-कभी उन्हें मिठाई नहीं मिल पाती तो वे काफी अपसेट भी हो जाते थे। काका को सिर्फ खाने का ही नहीं, खाना बनाने का भी शौक था। अपने कुकिंग के शौक के बारे में वे अक्सर हमसे बातें किया करते थे और रेसिपीज भी शेअर अरते थे। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था। सेट पर वे कभी किसी को बोर नहीं होने देते। हमेशा हंसते-हंसाते रहना ही उनका काम था। लेकिन इसके साथ ही वे अपने काम को लेकर भी बहुत डेडिकेटेड थे।
प्रस्तुतिरीना पारीक

नई दिल्ली से काका का था पुराना नाता

नवभारत टाईम्स की खबर में कहा गया है कि -
राजेश खन्ना बॉलिवुड के सुपर स्टार तो थे ही, राजनीति में भी उन्होंने एक स्टार की हैसियत से ही कदम रखे और दिल्ली उनका पॉलिटिकल स्टेज बनी। नई दिल्ली लोकसभा सीट से उन्होंने तीन बार चुनाव लड़ा और एक बार जीत भी हासिल की।

बॉलिवुड के दो सुपर स्टार्स अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना को राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जाता है। इंदिरा गांधी की हत्या की बाद जहां अमिताभ बच्चन अपने बाल सखा की मदद करने के लिए राजनीति में आए, वहीं राजेश खन्ना के कांग्रेस में आने की वजह भी राजीव गांधी ही बने। कहा जाता है कि बोफोर्स मामले के चलते जब गांधी और बच्चन परिवार में दूरियां बढ़ गईं, तो अमिताभ को मैसेज देने के मकसद से ही राजीव फिल्मों में उनके प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले राजेश खन्ना को राजनीति में लाए। हालांकि इसके पीछे एक वजह फिल्म स्टार्स की लोकप्रियता का इस्तेमाल करना भी था, जिसका चमत्कार राजीव गांधी 1984 के लोकसभा चुनावों में इलाहाबाद में भी देख चुके थे।

राजेश खन्ना ने नई दिल्ली सीट से तीन बार लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई। 1991 में राजीव गांधी ने बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी के सामने राजेश खन्ना को उतारा। कांग्रेसी सूत्रों के अनुसार, राजेश खन्ना के नाम का ऐलान आखिरी वक्त पर किया गया, जो खुद कांग्रेसियों के लिए भी किसी आश्चर्य से कम नहीं था। कहते हैं कि राजनीति के चलते कहीं न कहीं राजेश खन्ना और उनकी पत्नी डिंपल कापडि़या के बीच की दूरियां भी कम हुईं। दरअसल, लोकसभा चुनाव में राजेश खन्ना के प्रचार में उनकी पत्नी डिंपल ने भी सक्रियता से भाग लिया था। इससे पहले दोनों के बीच रिश्ते काफी तल्ख थे। उस दौरान राजेश खन्ना और डिंपल की लोकप्रियता का जादू युवा वोटरों पर इस तरह चढ़ा कि राजेश मामूली अंतर से ही आडवाणी से हारे।

आडवाणी गांधीनगर से भी चुनाव लड़े और जीते। बाद में आडवाणी ने नई दिल्ली सीट छोड़ दी। उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर राजेश खन्ना को मौका दिया और इस बार उन्होंने बीजेपी कैंडिडेट व जानेमाने फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा को हराया। चुनाव में फिल्मी ग्लैमर के बीच मुकाबला होने के कारण वह उपचुनाव काफी रोचक हुआ। प्रचार के दौरान दोनों के फिल्मी लटकों झटकों और डॉयलॉग्स ने वोटर्स का खूब मनोरंजन किया। 1996 में राजेश ने एक बार फिर इसी सीट से अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन इस बार वह बीजेपी के वरिष्ठ नेता जगमोहन से हार गए।

इस चुनाव के बारे में एनबीटी से बातचीत में पूर्व राज्यपाल व केंद्रीय मंत्री जगमोहन ने बताया कि मुझे जब नई दिल्ली से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, तो उस वक्त तक मुझे पता नहीं था कि मेरे सामने कौन होगा। बाद में मुझे राजेश खन्ना के बारे में पता चला। खुद को राजेश खन्ना का बहुत बड़ा फैन मानने वाले जगमोहन का कहना है कि राजेश खन्ना से एकाध मुलाकातों को छोड़कर कोई खास मुलाकात नहीं हुई। उस चुनाव के बारे में उनका कहना था कि हम दोनों की ओर से वह चुनाव काफी सोबर तरीके से लड़ा गया। आज की तरह एक दूसरे पर छींटाकशी जैसी चीज नहीं हुई। जगमोहन बताते हैं कि उस चुनाव में दिल्ली के पूर्व पार्षद व कांग्रेसी नेता जगप्रवेश चंद्रा ने राजेश खन्ना के इलेक्शन एजेंट की भूमिका निभाई थी।

जगमोहन से हारने के बाद राजेश खन्ना ने राज्य सभा में पहुंचने की कोशिशें भी कीं। राज्य सभाके लिए अपनी लॉबिंग के सिलसिले में वह दिल्ली के वसंत विहार इलाके में कोठी खरीद कर रहनेलगे। लेकिन काफी कोशिशें के बाद भी जब उन्हें सफलता नहीं मिलीतो राजनीति से उनकामोहभंग हो गया और फिर उन्होंने राजनीति को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया

राजनीति के भी मंजे हीरो थे काका, आडवाणी हो गए थे परेशान


समय लाईव ने लिखा है
               राजेश खन्ना ने राजनीति के अखाड़े में भी दांव पेंच आजमाए थे. 1991 के लोकसभा चुनाव में ‘काका’ भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से सिर्फ 1589 मतों से हारे.
उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को चुनावी मैदान में कड़ी चुनौती दी थी और यूं भी कहा जा सकता है कि उनके इस मुकाबले के बाद ही आडवाणी ने दिल्ली छोड़ गुजरात का रुख किया था.
1991 के लोकसभा चुनाव में ‘काका’ नयी दिल्ली संसदीय सीट से मैदान में थे और भाजपा ने अपने कद्दावर नेता आडवाणी को उनके मुकाबले में उतारा था. यह वह दौर था जब आडवाणी का राष्ट्रीय राजनीति में डंका बजता था.
चुनाव में अभिनेता और नेता के बीच कड़ा मुकाबला हुआ और राजनीति का गहन अनुभव रखने वाले आडवाणीराजेश खन्ना की लोकप्रियता से टक्कर नहीं ले सके. वह चुनाव जीत तो गए लेकिन बेहद मामूली अंतर से. आडवाणी को 93,662 वोट मिले तो वहीं राजेश खन्ना ने नौसिखिया होने के बावजूद 92,073 वोट हासिल कर अपनी लोकप्रियता का सिक्का जमा दिया.
आडवाणी राजेश खन्ना से मात्र 1589 मतों से ही चुनाव जीत सके जबकि उसी समय गांधीनगर में उन्होंने सवा लाख से भी अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीता था.
आडवाणी ने उस समय इन दोनों सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ा था और बाद में नयी दिल्ली की सीट छोड़ दी. उसके बाद से अबतक आडवाणी ने दिल्ली से चुनाव नहीं लड़ा.
आडवाणी ने राजेश खन्ना के निधन पर गहरा शोक जताया:-
आडवाणी ने आज राजेश खन्ना के निधन पर गहरा शोक जताते हुए कहा कि राजेश खन्ना बंबई सिनेमा के एक प्रमुख स्टार थे और उस समय उनकी जो ख्याति थी, वह हमेशा रहेगी.

राजेश खन्ना के साथ राजनीतिक संबंधों के बारे में पूछे जाने पर आडवाणी ने अधिक कुछ नहीं कहते हुए केवल इतना भर कहा कि वह एक अच्छे इंसान थे. जिनकी याद हमेशा रहेगी.
जब राजेश खन्ना शत्रुघ्न सिन्हा को दी पटखनी:- कांग्रेस ने आडवाणी के इस्तीफे से खाली हुई नयी दिल्लीसीट पर 1992 में हुए उप चुनाव में फिर राजेश खन्ना को अपना उम्मीदवार बनाया.
इस बार उनका मुकाबला  भाजपा के उम्मीदवार और बालीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा से था. दो अभिनेताओं की लड़ाई में इस बार राजेश खन्ना का पलड़ा भारी रहा और उन्होंने 101625 मत हासिल कर 28,256 मतों के अंतर से शत्रुघ्न सिन्हा को पटखनी दे दी.
काका यह चुनाव जीत कर 1992 से 1996 तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1996 के आम चुनाव में राजेश खन्ना का मुकाबला फिर से एक और भाजपा दिग्गज जगमोहन से हुआ. इस चुनाव में जगमोहन को जहां 139945 मत मिले वहीं राजेश खन्ना को 81630 मतों से संतोष करना पड़ा. जगमोहन यह चुनाव 58,315 मतों से जीत गए.
राजेश खन्ना का मलाल:-राजेश खन्ना को बाद में राज्यसभा में भेजे जाने की भी अटकलें लगाई गईं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. राजेश खन्ना के करीबी सूत्रों के अनुसार और अभिनय से राजनीति में आई इस हस्ती को यह मलाल रहा कि उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजा गया.
लेकिन इस असंतोष के बावजूद विभिन्न चुनावों में उन्होंने कांग्रेस के स्टार प्रचारक के रूप में अपनी भूमिका निभाई.
राजेश खन्ना का स्वास्थ्य काफी लंबे समय से खराब था और कुछ समय तक वह अस्पताल में भी रहे.

बॉलीवुड का पहला सुपर सितारा राजेश खन्ना


राजेश खन्ना के संबंध में आपकी सहेली में लिखा है
हिन्दी सिनेमा के महानतम् सितारों में कभी भी शुमार नहीं किए गए राजेश खन्ना ने एक वक्त ऎसा देखा जब उनके बिना किसी फिल्म की कल्पना करना भी बेमानी सा था। सत्तर के दशक में राजेश खन्ना ने जो सफलता हासिल की उसकी तुलना आज के किसी भी सफल नायक से नहीं की जा सकती है।राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार हैं। उन्होंने अभिनय में अपने करियर की शुरूआत 1966 में चेतन आनन्द की फिल्म आखिरी खत से शुरू की थी। जिस तरह से आज टीवी के जरिये टैलेंट हंट किया जाता है, कुछ इसी तरह काम 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर ने किया था। वे नया हीरो खोज रहे थे। फाइनल में दस हजार में से आठ लडके चुने गए थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। अंत में राजेश खन्ना विजेता घोषित किए गए।

राजेश खन्ना का वास्तविक नाम जतिन खन्ना है। फिल्म उद्योग ने उन्हें नया नाम दिया राजेश खन्ना। चेतन आनन्द की आखिरी खत ने राजेश खन्ना को हिन्दी फिल्मों में अपना स्थान बनाने में मदद की। 1969 से 1975 के बीच राजेश ने कई सुपरहिट फिल्में दीं। उस दौर में पैदा हुए ज्यादातर लडकों के नाम राजेश रखे गए। फिल्म इंडस्ट्री में राजेश को प्यार से काका कहा जाता है। जब वे सुपरस्टार थे तब एक कहावत बडी मशहूर थी- ऊपर आका और नीचे काका। राजेश खन्ना स्कूल और कॉलेज जमाने से ही एक्टिंग की ओर आकर्षित हुए। उन्हें उनके एक नजदीकी रिश्तेदार ने गोद लिया था और बहुत ही लाड-प्यार से उन्हें पाला गया। राजेश खन्ना ने फिल्म में काम पाने के लिए निर्माताओं के दफ्तर के चक्कर लगाए। स्ट्रगलर होने के बावजूद वे इतनी महंगी कार में निर्माताओं के यहां जाते थे कि उस दौर के हीरो के पास भी वैसी कार नहीं थी।

प्रतियोगिता जीतते ही राजेश का संघर्ष खत्म हुआ। सबसे पहले उन्हें "राज" फिल्म के लिए जीपी सिप्पी ने साइन किया, जिसमें बबीता जैसी बडी स्टार थीं। लेकिन उनकी पहली प्रदर्शित फिल्म आखिरी खत थी। अपने रूमानी अंदाज, स्वाभाविक अभिनय और कामयाब फिल्मों के लंबे सिलसिले के बल पर करीब डेढ दशक तक सिने प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले राजेश खन्ना के रूप में हिंदी सिनेमा को पहला ऎसा सुपरस्टार मिला जिसका जादू चाहने वालों के सिर चढकर बोलता था। 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे जतिन खन्ना बाद में फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुए। उनका अभिनय करियर शुरूआती नाकामियों के बाद इतनी तेजी से परवान चढा कि उसकी मिसाल बहुत कम ही मिलती है। परिवार की मर्जी के खिलाफ अभिनय को बतौर करियर चुनने वाले राजेश खन्ना ने वर्ष 1966 में 24 बरस की उम्र में आखिरी खत फिल्म से सिनेमा जगत में कदम रखा था।

बाद में राज, बहारों के सपने और औरत के रूप में उनकी कई फिल्में आई। मगर उन्हें बॉक्स आफिस पर कामयाबी नहीं मिल सकी। लेकिन इन तीन वर्षो में राजेश खन्ना ने अपने अभिनय से कुछ ऎसे निर्माताओं को प्रभावित करने में सफलता पाई जो उन दिनों हिन्दी सिनेमा के प्रमुख कर्ताधर्ताओं में शामिल होते थे। ऎसे ही एक निर्माता थे शक्ति सामन्त। शक्ति सामन्त अपने समय में अशोक कुमार, मनोज कुमार, देवआनन्द इत्यादि के साथ काम कर चुके थे और बॉलीवुड के सफलतम निर्माता निर्देशकों में उनका शुमार होता था। 1969 में उन्होंने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर को एक साथ लेकर एक रोमांटिक प्रेम कहानी बनाई। इस फिल्म में उन्होंने राजेश खन्ना को पहली बार दोहरी भूमिका में पेश किया। आराधना ने राजेश खन्ना के करियर को उडान दी और देखते ही देखते वह युवा दिलों की धडकन बन गए। 

आराधना ने राजेश खन्ना की किस्मत के दरवाजे खोल दिए और उसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 हिट फिल्में देकर समकालीन तथा अगली पीढी के अभिनेताओं के लिए मील का पत्थर कायम किया। वर्ष 1970 में बनी फिल्म सच्चा झूठा के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया। वर्ष 1971 राजेश खन्ना के अभिनय करियर का सबसे यादगार साल रहा।उस वर्ष उन्होंने कटी पतंग, आनन्द, आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी और अंदाज जैसी सुपरहिट फिल्में दीं। भावपूर्ण दृश्यों में राजेश खन्ना के सटीक अभिनय को आज भी याद किया जाता है। आनन्द फिल्म में उनके सशक्त अभिनय को एक उदाहरण का दर्जा हासिल है। एक लाइलाज बीमारी से पीडित व्यक्ति के किरदार को राजेश खन्ना ने एक जिंदादिल इंसान के रूप जीकर कालजयी बना दिया। राजेश खन्ना को आनन्द में यादगार अभिनय के लिये वर्ष 1971 में लगातार दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया।

अपनी लगातार सुपर सफलता से राजेश खन्ना ने जहां आम जनता का दिल जीतने में सफलता पाई वहीं उन्होंने बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में बनी फिल्म आविष्कार के जरिए उन्होंने उस वर्ग के दर्शकों को भी अपना दीवाना बनाने में सफलता प्राप्त की जो फार्मूला फिल्मों से इतर बनी फिल्मों को पसन्द करते थे। उन्हें आविष्कार फिल्म के लिए भी फिल्मफेयर पुरस्कार प्रदान किया था। यह उनके करियर का अन्तिम फिल्मफेयर पुरस्कार था। इसके 31 वर्ष बाद उन्हें साल 2005 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया था। राजेश खन्ना ने अनेक अभिनेत्रियों के साथ काम किया, लेकिन शर्मिला टैगोर और मुमताज के साथ उनकी जोडी खासतौर पर लोकप्रिय हुई। उन्होंने शर्मिला के साथ आराधना, सफर, बदनाम, फरिश्ते, छोटी बहू, अमर प्रेम, राजा रानी और आविष्कार में जोडी बनाई, जबकि दो रास्ते, बंधन, सच्चा झूठा, दुश्मन, अपना देश, आपकी कसम, रोटी तथा प्रेम कहानी में मुमताज के साथ उनकी जोडी बहुत पसंद की गई। आराधना फिल्म का गाना "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू..." उनके करियर का सबसे बडा हिट गीत रहा। राजेश खन्ना की सफलता के पीछे संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर का अहम योगदान रहा है।

इनके बनाए और राजेश पर फिल्माए अधिकांश गीत हिट साबित हुए और आज भी सुने जाते हैं। किशोर ने 91 फिल्मों में राजेश को आवाज दी तो आरडी ने उनकी 40 फिल्मों में संगीत दिया। राजेश खन्ना ने वर्ष 1973 में खुद से उम्र में काफी छोटी नवोदित अभिनेत्री डिम्पल कपाडिया से विवाह किया और वे दो बेटियों टि्वंकल और रिंकी के माता-पिता बने। हालांकि राजेश और डिम्पल का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और कुछ समय के बाद वे अलग हो गए। बाद में उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा और वर्ष 1991 से 1996 के बीच नई दिल्ली से कांग्रेस के लोकसभा सांसद भी रहे। वर्ष 1994 में उन्होंने अभिनय की नई पारी शुरू की। उसके बाद उनकी आ अब लौट चलें (1999), क्या दिल ने कहा (2002), जाना (2006) और वफा (2008) में उन्होंने अभिनय किया। फिलहाल उन्हें टीवी पर हावेल्स फैन के विज्ञापन में देखा जा रहा है। इस विज्ञापन का निर्देशन आर.बल्की ने किया है।

राजेश खन्ना की फिल्मों से सीखा अभिनय: सुनील शेट्टी


 राजेश खन्ना से जुड़ी यादों को साझा करते हुए आनलाईन हिन्दी ने लिखा है
                                फिल्म जगत के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना के निधन से पूरा बॉलीबुड शोक में डूबा है। जब इन महान हस्ती ने दुनिया से विदा ली उस समय फिल्म अभिनेता सुनील शेट्टी राजधानी लखनऊ में थे। उन्होंने कहा कि राजेश खन्ना उनके आर्दश रहे हैं और वे उनकी फिल्में देखकर बड़े हुए हैं।
बालीवुड स्टार सुनील शेट्टी ने राजेश खन्ना के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुये कहा कि रूपहले पर्दे का यह सितारा अस्त होने के बाद भी अभिनय की दुनिया में कलाकारों के लिये प्रेरणा का श्रोत बना रहेगा। अपनी नई फिल्म 'पिक्चर अभी बाकी है' के प्रमोशन के सिलसिले में नवाब नगरी आये सुनील शेट्टी ने कहा कि श्री खन्ना के निधन से मै स्तब्ध हूं, वह मेरे आदर्श थे। मैं उनकी फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं और उनकी फिल्मों से अभिनय की बारीकियों को सीखा हूं।
उन्होंने कहा कि राजेश खन्ना का निधन फिल्म जगत के लिए तो क्षति है साथ ही यह मेरे लिये बहुत बडा आघात है। सुनील ने कहा कि श्री खन्ना जैसे अभिनेता रोज-रोज जन्म नहीं लेते उन्होंने बॉलीवुड को जो दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा कि अभिनेता दारा सिंह की मृत्यु के एक सप्ताह के भीतर श्री खन्ना की मृत्यु से फिल्म जगत शोक के समंदर में समा गया है। सत्तर के दशक के महानायक की क्षतिपूर्ति करना बालीवुड के लिये लगभग असंभव है। वहीं यहां मौजूद हास्य अभिनेता राजपाल यादव ने भी राजेश खन्ना के निधन पर दुख जाहिर किया। उन्होंने कहा कि श्री खन्ना जैसे महान कलाकार के सदियों में एक बार संसार में अवतरित होते है। उनकी भरपाई फिल्मी दुनिया में कभी नही हो सकेगी।

... और लड़कियों और महिलाओं से घिर गए राजेश खन्ना!


राजेश खन्ना से जुड़ी यादों को साझा करते हुए दैनिक भास्कर ने लिखा है
जोधपुर. 1998 का फरवरी माह। मौसम चुनाव का था। बीते जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना यहां एक सभा को संबोधित करने आए थे। जहां वे ठहरे थे, वहां महिलाओं, युवतियों और बच्चियों ने उन्हें घेर लिया। 

जिस सुपर स्टार राजेश खन्ना की एक झलक देखना किसी जमाने में उनका सपना रहा हो, उन्हें अपने बीच पाकर हर चेहरे पर गजब की खुशी छाई थी। अपनी प्रशंसकों की डिमांड पर खन्ना ने अदाकारी भी दिखाई और खुलकर बातें भी कीं। 

राजेश खन्ना को इतनी पसंद आई ठेले वाली चाय कि एक और पीने के बाद...!



राजेश खन्ना से जुड़ी यादों को साझा करते हुए दैनिक भास्कर ने लिखा है                       
                             हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना बुधवार को हम सबको छोड़कर चले गए। ‘अच्छा तो हम चलते है’, हमें और जीने की चाहत ना होती अगर तुम ना होते, मेरे नैना सावन भादो’ जैसे सुपरहिट गाने गुनगुनाते उनके फैन्स ने आंसुओं के साथ उन्हें श्रद्धांजलि दी। ‘जिंदगी प्यार का गीत है’ से काका ने सभी को हंसते गाते मुस्कराते जीना सिखाया, पर खुद ‘जै जै शिव शंकर’ के पास यही कहते हुए लीन हो गए कि ‘चला जाता हूं किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए’। उनके फैन्स से सिटी रिपोर्टर ने उनसे जुड़ी यादों को शेअर किया।

जयपुरवासियों के रहे दिल के करीब

ये लाल रंग, कब मुझे छोड़ेगा

वर्ष 1974 में बांद्रा के महबूब स्टूडियो में फिल्म ‘प्रेम नगर’ का गीत ‘ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा’ किशोर कुमार की आवाज में टेप हो रहा था। काका लीड रोल में होने से उन्हें फाइनल टेप सुनने को बुलाया गया। उस समय उन्होंने किशोर के भावों की तारीफ करते हुए अंत की पंक्तियों को दुबारा टेप करने को कहा था। काका ने कहा कि नशा और गम दोनों मुझे गिरा दें ऐसा फील चाहिए। यह कहना है जयपुर के सिंगर चन्द्र कटारिया का।

जयपुर में फिल्म धर्मकांटा

सुल्तान अहमद के निर्देशन में 1980-81 में जब वे फिल्म ’धर्म कांटा’ की शूटिंग पर राजकुमार, वहीदा रहमान, जीतेन्द्र के साथ जयपुर आए तो उन्होंने होटल क्लार्क्‍स आमेर में मुझसे (राज बंसल) आधे घंटे तक बात की। उन्होंने कहा था कि सफल होने के लिए सही सोच और सही मार्ग चुनना होता है। जिंदगी कांटों की तरह है। इसे फूल बनाने की कोशिश करो।

अच्छे दोस्त थे मेरे

फिल्म वितरक नारायण दास माखीजा कहते हैं कि खन्ना साहब मेरे अच्छे दोस्त थे। जब भी जयपुर आते तो मेरे घर जरूर आते और घंटों बातें करते थे। उनका स्वभाव ऐसा था कि प्यार करने वालों को खूब प्यार और घृणा करने वाले को देखना तक पसंद नहीं करते थे। वर्ष 1967 में नासिर हुसैन निर्देशित ‘बहारों के सपने’ फिल्म के दौरान उनसे मिला था।

हर सिनेमाघर में उनकी ही फिल्म

एक दौर था, जब शहर के हर सिनेमा घर में उनकी फिल्में ही परदे पर होती थीं। यह कहना है वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान का। वे कहते हैं वर्ष 1969 में ‘आराधना’, ‘इत्तफाक’, ‘बंधन’, ‘दो रास्ते’ सिनेमाघरों में रहीं। वहीं 1971 में ‘कटी पतंग’, ‘आनंद’, ‘आन मिलो सजना’, ‘अंदाज’, ‘मर्यादा’, ‘छोटी बहू’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘गुड्डी’, ‘महबूब की मेहंदी’, ‘बदनाम फरिश्ते’ रिलीज हुईं। उस समय लड़के उनकी जैसे हेयर स्टाइल रखने लगे थे।

मैं तो आपकी प्रतिध्वनि हूं

आरयू ड्रामा डिपार्टमेंट की हैड अर्चना श्रीवास्तव कहती हैं कि 1989 में जब मैं एनएसडी दिल्ली में थी, तब कनॉट पैलेस पर उनसे शूटिंग के दौरान मुलाकात हुई। उन्होंने एनएसडी स्टूडेंट के बारे में सुना तो कहा ‘राजस्थान का नाम ऊंचा करना बेटा।’ मैंने उनसे पूछा, सर आप परदे पर बड़े रंगीले और दूसरों को कुछ नहीं समझने वाले दिखते हो, पर यहां ऐसा नहीं है। इस पर उन्होंने कहा ‘मैं तो इंसान हूं, आपकी प्रतिध्वनि हूं, बस कर्म कर आगे बढ़ रहा हूं।’

जब मिला दादा फाल्के पुरस्कार

जनवरी, 2009 में पिताजी ओपी बंसल को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलना था, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वे नहीं जा सके। मां और मैं पुरस्कार लेने गए तो राजेश खन्ना ने ही उन्हें पुरस्कृत करते हुए पूछा- बंसल साहब नहीं आए क्या? जब उन्हें तबीयत खराब होने के बारे में बताया तो काका ने सभागार में पिताजी के साथ संबंधों के बारे में प्रशंसा की। यह कहना है फिल्म वितरक सुनील बंसल का।


.वो ठेले वाली चाय और मैं

सुपरस्टार क्या होता है? यह राजेश खन्ना अच्छी तरह जानते थे। उनसे मेरी (अरुण किम्मतकर) मुलाकात ‘धर्मकांटा’ की शूटिंग के दौरान हुई। एक दिन उनके साथ गाड़ी में शूटिंग स्पॉट तक गया। उस दौरान उन्होंने गलता रोड पर एक ठेले के पास गाड़ी रुकवाकर कड़क चाय पीने को कहा। चाय इतनी पसंद आई कि उन्होंने दुबारा पी। फिर गाड़ी से उतरकर चाय वाले को 500 रु. दिए। चाय वाले ने मना कर दिया, तो भी उन्होंने उसकी जेब में डाल दिए।

जयपुर में रही हिट फिल्में

वर्ष 1969 में ‘दो रास्ते’, 1970 में ‘सच्चा झूठा’, ‘आराधना’, 1971 में ‘कटी पतंग’, ‘हाथी मेरे साथी’, 1972 में ‘अमर प्रेम’, 1974 में ‘आपकी कसम’, ‘रोटी’ सहित कई और फिल्मों ने शहर में सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन मनाया।

आंसू पोंछते हुए अमिताभ ने छुए राजेश खन्‍ना के पांव

राजेश खन्ना की मौत के बाद  अमिताभ बच्चन  के बारे में दैनिक भास्कर ने लिखा है -
मुंबई। महानायक अमिताभ बच्चन बुधवार को राजेश खन्‍ना के बंगले (आशीर्वाद) पर पहुंचे तो उनकी आंखें नम हो गईं। उन्‍होंने अक्षय कुमार को कस कर गले लगाया। फिर हाथ जोड़े, सिर झुकाते हुए डिंपल की ओर बढ़े और उन्हें ढांढस बंधाया। 
अमिताभ बच्चन जब राजेश खन्‍ना के मृत शरीर की ओर बढ़े तो उनकी आंखों में आंसू भर आए।उन्‍होंने अपनी भीगी आंखों से चश्मा उतारा और काका के पैर छुए। बिग बी को भावुक होता देख अभिषेक बच्चन उनकी ओर बढ़े और फिर उन्हें संभाला।
इसके बाद अमिताभ 'काका' के पास ही बैठ गए और उनके आखिरी वक्‍त के बारे में पूछा। सूत्रों के मुताबिक बिग बी ने यह भी पूछा कि किस वक्त काका ने अंतिम सांस ली और उस वक्त कौन-कौन उनके पास था। 
गुजरे जमाने के सुपर स्‍टार राजेश खन्‍ना के निधन की खबर बुधवार दोपहर सार्वजनिक हुई। वह महीनों से बीमार थे। सोमवार को ही उन्‍हें लीलावती अस्‍पताल से छुट्टी मिली थी। लेकिन बुधवार को उनकी तबीयत फिर से ज्‍यादा बिगड़ गई और अंतत: वह हमसे जुदा हो गए। शाहरुख खान, सलमान खान, कैटरीना कैफ और बॉलीवुड की कई अन्य नामचीन हस्तियां काका के दर्शन करने आशीर्वाद पहुंचे।  गुरुवार को 11 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा। 

रेतीली धरती से भी 'काका' का नाता,

राजेश खन्ना के सफर के बारे में दैनिक भास्कर ने लिखा है -

जोधपुर.बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना (काका) अपने पूरे फिल्मी कॅरियर के दौरान दो बार सूर्यनगरी आए। 15 सितंबर 1986 को नसरानी सिनेमा का उदघाटन करने जोधपुर आए। राजेश खन्ना का सिनेमा के मालिक भूरे खां नसरानी ने गर्मजोशी से स्वागत किया।

चुनावी सभा में दिखाया फिल्मी अंदाज

लोकसभा प्रत्याशी अशोक गहलोत के समर्थन में रावण का चबूतरा मैदान में 13 फरवरी 1998 को चुनावी सभा को संबोधित करते हुए फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना फिल्मी स्टाइल में भाजपा पर बरस पड़ें। सभा में विलंब से पहुंचते ही राजेश खन्ना ने इस शेर के साथ संबोधन शुरू किया ‘जख्म पत्ता- पत्ता है, दर्द डाली डाली हैं, ऐ चमन इतना बता तेरा कौन माली हैं’।

चुनावी सभा में काका ने कहा कि ‘हम काम के नाम पर, वे राम के नाम पर वोट मांगते हैं’ ‘ये कहते हैं भगवान राम को छत देंगे, राम तो सभी को छत देते हैं, राम को सड़क पर नहीं बेचते। उन्होंने ‘रोटी’ फिल्म के मशहूर गाने की लाइन ‘ये जो पब्लिक हैं, ये सब जानती हैं, अंदर क्या है, बाहर क्या हैं’ सभा के दौरान राजेश खन्ना ने अशोक गहलोत को जिताने की अपील की।

एक ही घर में चार पीढ़ियां देखकर खुश हुए

कांग्रेसी नेता जवाहर सुराणा ने बताया कि अशोक गहलोत (वर्तमान में प्रदेश के मुख्यमंत्री) के समर्थन में 13 फरवरी 1998 को रावण का चबूतरा मैदान में चुनावी सभा को संबोधित करने जोधपुर आए थे। सभा समाप्त होने के बाद शाम करीब 7 बजे राजेश खन्ना उनके घर शास्त्रीनगर स्थित ई- 10 पर पिता लक्ष्मीचंद सुराणा के साथ आए। उन्होंने यहां पिता लक्ष्मीचंद सुराणा, (बेटे) जवाहर, (पोता) ललित और (पड़पौत्र)धवल एक साथ चार पीढ़ियों के संयुक्त परिवार को देखा तो उनका चेहरा खिल उठा।

गायक मन्ना डे को बहुत याद आए राजेश खन्ना


राजेश खन्ना की मौत के बाद अमर उजाला लिखता है कि -
                            राजेश खन्ना के निधन पर शोक जताते हुए महान गायक मन्ना डे ने बुधवार को कहा कि बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार के लिए गाना उनके लिए सम्मान की बात थी।

मन्ना ने कहा, "वह एक महान कलाकार थे, बेशक एक सच्चे महानायक। उनके लिए पाश्र्व गायन करना मेरे लिए सम्मान की बात है। उनके जैसे दुर्लभ कलाकार के साथ मैंने कई फिल्में कीं।"

मन्ना डे ने राजेश खन्ना की फिल्म 'आनंद' (1971) के गाने-जिंदगी कैसी है पहेली, 'बावर्ची' (1972) के-तुम बिन जीवन कैसा जीवन, 'आविष्कार' (1973)-हंसाने की चाह ने कितना मुझे, 'महबूबा' (1976) के-गोरी तेरी पैजनियां' में अपनी आवाज दी थी।

मन्ना ने कहा, "उनके साथ काम करना मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव है। उनके लिए गाया मेरा हर गाना सफल रहा। खासकर 'बावर्ची' और 'आनंद' फिल्म का गाना। हम समारोह पर मिला करते थे। वह बातचीत करने के लिए और दोस्ती के लिहाज से अच्छे इंसान थे।"

राजेश खन्ना पर फिल्माए गए 'आनंद' फिल्म के 'जिंदगी कैसी है पहेली' गाने में अपनी आवाज देने वाले गायक मन्ना डे ने कहा, "मुझे उनके गाना फिल्माने का अंदाज पसंद था।

किसी गाने की सफलता इस बात पर निर्भर क रती है कि एक अभिनेता उसे कैसे फिल्माता है। वह गाने के फिल्माने में बेहतरीन थे। मैं कभी भी उनके कर्ज को नहीं उतार पाउंगा।" लंबी बीमारी के बाद राजेश खन्ना का बुधवार को निधन हो गया। वह 69 साल के थे।