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बुधवार, 18 जुलाई 2012

राजेश खन्ना की जिंदगी का सफर

नवभारत टाईम्स की खबर में कहा गया है कि

राजेश खन्ना को ऐसे ही सुपर स्टार नहीं कहा जाता था। लोग इस कदर उनके दीवाने थे कि बाजारों में युवतियां पागलों की तरह उनकी कार को चूमती थीं और कार पर लिपस्टिक के दाग ही दाग होते थे। युवतियां उन्हें अपने खून से लिखे खत भेजा करती थीं। राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी, वैसी पहले या बाद में कभी नहीं दिखी।

जतिन बन गया राजेश 
29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना की परवरिश उनके दत्तक माता-पिता ने की। उनका नाम पहले जतिन खन्ना था। स्कूली दिनों से ही उनका झुकाव अभिनय की ओर था और उन्होंने कई नाटकों में ऐक्टिंग की। सपनों के पंख लगने की उम्र आई, तो उन्होंने फिल्मों की राह पकड़ने का फैसला किया। यह दौर उनकी जिंदगी की नई इबारत लिखकर लाया और उनके चाचा ने उनका नाम जतिन से बदलकर राजेश कर दिया। इस नाम ने न केवल उन्हें शोहरत दी, बल्कि यह नाम हर युवक और युवती के जेहन में अमर हो गया।

आया 'काका' का दौर 
1965 में राजेश खन्ना ने यूनाइटेड प्रड्यूर्स ऐंड फिल्मफेयर के प्रतिभा खोज अभियान में बाजी मारी। उनकी पहली फिल्म चेतन आनंद निर्देशित 'आखिरी खत' थी। दूसरी फिल्म मिली 'राज' भी प्रतियोगिता जीतने का ही पुरस्कार थी। उस दौर में दिलीप कुमार और राज कपूर के अभिनय का डंका बजता था, किसी को अहसास भी नहीं था कि एक 'नया सितारा' शोहरत की बुलंदियां छूने के लिए बढ़ रहा है। राजेश खन्ना ने 'बहारों के सपने', 'औरत', 'डोली' और 'इत्तेफाक' जैसी शुरुआती सफल फिल्में दीं, लेकिन 1969 में आई 'आराधना' ने बॉलिवुड में 'काका' के दौर की शुरुआत कर दी। 'आराधना' में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का ऐसा चित्रण किया कि युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी और 'काका' प्रेम का नया प्रतीक बन गए।

किशोर बन गए आवाज
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आराधना' से किशोर कुमार जैसे गायक को भी बॉलिवुड में स्थापित होने का मौका मिला और फिर वह राजेश खन्ना के गीतों की आवाज बन गए। अदाकारी और आवाज की इस जुगलबंदी ने बॉलिवुड को 'मेरे सपनों की रानी', 'रूप तेरा मस्ताना', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'जय जय शिवशंकर' और 'जिंदगी कैसी है पहेली' जैसे कालजयी गाने दिए। 'आराधना' और 'हाथी मेरे साथी' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया, जिनमें 106 फिल्मों को उन्होंने सिर्फ अपने दम पर सफलता दिलाई, 22 फिल्मों में उनके साथ उनकी टक्कर के अन्य नायक भी थे।

आज तक नहीं टूटा रेकॉर्ड 
राजेश खन्ना ने 1969 से 1972 के बीच लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं। इस रेकॉर्ड को आज तककोई नहीं तोड़ पाया, इसके बाद बॉलिवुड में 'सुपरस्टार' का आगाज हुआ। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठअभिनेता के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। इस पुरस्कार के लिए उनका 14 बार नामांकनहुआ। उन्हें 2005 में 'फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट' अवॉर्ड दिया गया। रोमांटिक छवि केबावजूद उन्होंने विविधतापूर्ण रोल किए, जिनमें लाइलाज बीमारी से जूझता आनंद, 'बावर्ची' काखानसामा, 'अमर प्रेम' का अकेला पति और 'खामोशी' के मानसिक रोगी की भूमिका थी। बॉलिवुडका यह स्वर्णिम दौर था और राजेश खन्ना की अदाकारी के लिए यह सोने पर सुहागा साबित हुआऔर उन्हें अपने समय के कला पारखियों के साथ काम करने का मौका मिला।

एक से एक हिट फिल्में
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अमर प्रेम' और 'आप की कसम' जैसी फिल्मों में राजेश खन्ना की शर्मिला टैगोर और मुमताज केसाथ ऐसी 'केमेस्ट्री' बनी कि इन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनकी प्रतिभा को शक्ति सामंत, यशचोपड़ा, मनमोहन देसाई, ऋषिकेश मुखर्जी, रमेश सिप्पी ने और निखारा। आर. डी. बर्मन औरकिशोर कुमार के साथ उन्होंने 30 से अधिक फिल्मों में काम किया। राजेश खन्ना की फिल्में1976-78 के दौरान पहले सी सफलता हासिल नहीं कर पाईं। 1978 के बाद उन्होंने 'फिर वही रात', 'दर्द', 'धनवान', 'अवतार' और 'अगर तुम ना होते' जैसी फिल्में कीं, जो कमाई के लिहाज से सफलनहीं थीं, लेकिन आलोचकों ने जरूर सराहा।

सुपरस्टार के सुपर अफेयर 
उनके व्यक्तित्व ने न केवल प्रशंसकों को दीवाना बनाया, बल्कि सुनहरे दिनों में अभिनेत्रियों पर भीउनका जादू चला। 70 के दशक में पहले उनका अंजू महेंद्रू के साथ अफेयर चला, फिर 1973 मेंउन्होंने अपने से 15 साल छोटी डिंपल कपाडि़या से शादी कर ली। उनकी दो बेटियां ट्विंकल औररिंकी हैं, डिंपल कपाडि़या 1984 में राजेश खन्ना से अलग हो गईं। हालांकि, उन्होंने कभीऔपचारिक रूप से तलाक नहीं लिया। राजेश खन्ना का नाम 'सौतन' की नायिका टीना मुनीम सेभी जुड़ा। इस जोड़ी ने 'फिफ्टी फिफ्टी', 'बेवफाई', 'सुराग', 'इंसाफ मैं करूंगा' तथा 'अधिकार' जैसीफिल्में दीं।

सांसद राजेश खन्ना 
1992 से लेकर 1996 तक राजेश खन्ना लोकसभा के सदस्य रहे। वह कांग्रेस के टिकट पर नईदिल्ली सीट से जीते थे। जब वह सांसद थे, तो उन्होंने अपना पूरा समय राजनीति को दिया औरअभिनय की पेशकशों को ठुकरा दिया। उन्होंने वर्ष 2012 के आम चुनाव में भी पंजाब में कांग्रेस केलिए चुनाव प्रचार किया था।

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