किसी जमाने में करोडों जवां दिलों की धड़कन रहे हिंदी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना ने ऐक्टिंग के अलावा फिल्म प्रॉडक्शन और नेता के रूप में भी लोकप्रियता हासिल की।
ऐक्टर के रूप में उनकी लोकप्रियता का यह आलम था कि बड़े-बड़े स्टार उनकी चमक के सामने फीके पड़ गए थे। वह बॉलिवुड के पहले ऐसे ऐक्टर थे, जिन्हें देखने के लिए लोगों की कतारें लग जाती थीं और युवतियां तो अपने खून से उन्हें चिट्ठी लिखा करती थीं। किस्से मशहूर हैं कि कई लड़कियों ने राजेश खन्ना के फोटो से शादी कर ली थी। उन्होंने कुल 163 फिल्मों में काम किया जिनमें 106 फिल्मों में वह हीरो रहे और 22 फिल्मों में उन्होंने को-ऐक्टर की भूमिका अदा की। इसके अलावा उन्होंने 17 शॉर्ट फिल्मों में भी काम किया।
काका के नाम से मशहूर राजेश खन्ना ने बेस्ट ऐक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार तीन बार हासिल किया और 14 बार वह इस अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुए। उन्होंने बेस्ट ऐक्टर के लिए बीएफजेए अवॉर्ड चार बार पाया और 25 बार वह इसके लिए नॉमिनेट किए गए। उन्हें 2005 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।
राजेश खन्ना ने अपना फिल्मी सफर 'आखिरी खत' फिल्म से शुरू किया और राज, बहारों के सपने, इत्तेफाक और आराधना जैसी फिल्मों से वह उस मुकाम तक पहुंचे। जहां शायद ही कोई अभिनेता पहुंच पाए। एक खास अदा के साथ पलकें झपकाते हुए मुस्कराकर अपने प्रेम का इजहार करते रोमांटिक हीरो की उनकी छवि के दीवाने आज भी बहुत हैं। कुछ दूसरे अभिनेताओं ने उनकी इस अदा की कॉपी करने की कोशिश की लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए।
काका के नाम से मशहूर राजेश खन्ना ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार तीन बार हासिल किया और चौदह बार वह इस पुरस्कार के नामांकित हुए। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए बीएफजेए पुरस्कार चार बार प्राप्त किया और 25 बार वह इसके लिए नामांकित किए गए। उन्हें 2005 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।
29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था। 1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में 'आखिरी खत' नामक फिल्म में काम किया था। इसके बाद 'राज', 'बहारों के सपने', 'औरत के रूप' जैसी कई फिल्में उन्होंने की लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में 'आराधना' से मिली। इसके बाद एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया।
1971 में राजेश खन्ना ने 'कटी पतंग', 'आनन्द', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी', 'अंदाज' नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराए रखा। बाद के दिनों में 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवन साथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमक हराम', 'हमशक्ल' जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा। बाद में वह राजनीति में आए और 1991 में वह नई दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए।
राजेश खन्ना उस मुकाम तक पहुंचे, जहां शायद ही कोई ऐक्टर पहुंच पाए। एक खास अदा के साथ पलकें झपकाते हुए मुस्कुराकर अपने प्रेम का इजहार करते रोमांटिक हीरो की उनकी छवि के दीवाने आज भी बहुत हैं। कुछ दूसरे ऐक्टर्स ने उनकी इस अदा की कॉपी करने की कोशिश की लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए।
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