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बुधवार, 18 जुलाई 2012

बॉलीवुड का पहला सुपर सितारा राजेश खन्ना


राजेश खन्ना के संबंध में आपकी सहेली में लिखा है
हिन्दी सिनेमा के महानतम् सितारों में कभी भी शुमार नहीं किए गए राजेश खन्ना ने एक वक्त ऎसा देखा जब उनके बिना किसी फिल्म की कल्पना करना भी बेमानी सा था। सत्तर के दशक में राजेश खन्ना ने जो सफलता हासिल की उसकी तुलना आज के किसी भी सफल नायक से नहीं की जा सकती है।राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार हैं। उन्होंने अभिनय में अपने करियर की शुरूआत 1966 में चेतन आनन्द की फिल्म आखिरी खत से शुरू की थी। जिस तरह से आज टीवी के जरिये टैलेंट हंट किया जाता है, कुछ इसी तरह काम 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर ने किया था। वे नया हीरो खोज रहे थे। फाइनल में दस हजार में से आठ लडके चुने गए थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। अंत में राजेश खन्ना विजेता घोषित किए गए।

राजेश खन्ना का वास्तविक नाम जतिन खन्ना है। फिल्म उद्योग ने उन्हें नया नाम दिया राजेश खन्ना। चेतन आनन्द की आखिरी खत ने राजेश खन्ना को हिन्दी फिल्मों में अपना स्थान बनाने में मदद की। 1969 से 1975 के बीच राजेश ने कई सुपरहिट फिल्में दीं। उस दौर में पैदा हुए ज्यादातर लडकों के नाम राजेश रखे गए। फिल्म इंडस्ट्री में राजेश को प्यार से काका कहा जाता है। जब वे सुपरस्टार थे तब एक कहावत बडी मशहूर थी- ऊपर आका और नीचे काका। राजेश खन्ना स्कूल और कॉलेज जमाने से ही एक्टिंग की ओर आकर्षित हुए। उन्हें उनके एक नजदीकी रिश्तेदार ने गोद लिया था और बहुत ही लाड-प्यार से उन्हें पाला गया। राजेश खन्ना ने फिल्म में काम पाने के लिए निर्माताओं के दफ्तर के चक्कर लगाए। स्ट्रगलर होने के बावजूद वे इतनी महंगी कार में निर्माताओं के यहां जाते थे कि उस दौर के हीरो के पास भी वैसी कार नहीं थी।

प्रतियोगिता जीतते ही राजेश का संघर्ष खत्म हुआ। सबसे पहले उन्हें "राज" फिल्म के लिए जीपी सिप्पी ने साइन किया, जिसमें बबीता जैसी बडी स्टार थीं। लेकिन उनकी पहली प्रदर्शित फिल्म आखिरी खत थी। अपने रूमानी अंदाज, स्वाभाविक अभिनय और कामयाब फिल्मों के लंबे सिलसिले के बल पर करीब डेढ दशक तक सिने प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले राजेश खन्ना के रूप में हिंदी सिनेमा को पहला ऎसा सुपरस्टार मिला जिसका जादू चाहने वालों के सिर चढकर बोलता था। 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे जतिन खन्ना बाद में फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुए। उनका अभिनय करियर शुरूआती नाकामियों के बाद इतनी तेजी से परवान चढा कि उसकी मिसाल बहुत कम ही मिलती है। परिवार की मर्जी के खिलाफ अभिनय को बतौर करियर चुनने वाले राजेश खन्ना ने वर्ष 1966 में 24 बरस की उम्र में आखिरी खत फिल्म से सिनेमा जगत में कदम रखा था।

बाद में राज, बहारों के सपने और औरत के रूप में उनकी कई फिल्में आई। मगर उन्हें बॉक्स आफिस पर कामयाबी नहीं मिल सकी। लेकिन इन तीन वर्षो में राजेश खन्ना ने अपने अभिनय से कुछ ऎसे निर्माताओं को प्रभावित करने में सफलता पाई जो उन दिनों हिन्दी सिनेमा के प्रमुख कर्ताधर्ताओं में शामिल होते थे। ऎसे ही एक निर्माता थे शक्ति सामन्त। शक्ति सामन्त अपने समय में अशोक कुमार, मनोज कुमार, देवआनन्द इत्यादि के साथ काम कर चुके थे और बॉलीवुड के सफलतम निर्माता निर्देशकों में उनका शुमार होता था। 1969 में उन्होंने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर को एक साथ लेकर एक रोमांटिक प्रेम कहानी बनाई। इस फिल्म में उन्होंने राजेश खन्ना को पहली बार दोहरी भूमिका में पेश किया। आराधना ने राजेश खन्ना के करियर को उडान दी और देखते ही देखते वह युवा दिलों की धडकन बन गए। 

आराधना ने राजेश खन्ना की किस्मत के दरवाजे खोल दिए और उसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 हिट फिल्में देकर समकालीन तथा अगली पीढी के अभिनेताओं के लिए मील का पत्थर कायम किया। वर्ष 1970 में बनी फिल्म सच्चा झूठा के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया। वर्ष 1971 राजेश खन्ना के अभिनय करियर का सबसे यादगार साल रहा।उस वर्ष उन्होंने कटी पतंग, आनन्द, आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी और अंदाज जैसी सुपरहिट फिल्में दीं। भावपूर्ण दृश्यों में राजेश खन्ना के सटीक अभिनय को आज भी याद किया जाता है। आनन्द फिल्म में उनके सशक्त अभिनय को एक उदाहरण का दर्जा हासिल है। एक लाइलाज बीमारी से पीडित व्यक्ति के किरदार को राजेश खन्ना ने एक जिंदादिल इंसान के रूप जीकर कालजयी बना दिया। राजेश खन्ना को आनन्द में यादगार अभिनय के लिये वर्ष 1971 में लगातार दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया।

अपनी लगातार सुपर सफलता से राजेश खन्ना ने जहां आम जनता का दिल जीतने में सफलता पाई वहीं उन्होंने बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में बनी फिल्म आविष्कार के जरिए उन्होंने उस वर्ग के दर्शकों को भी अपना दीवाना बनाने में सफलता प्राप्त की जो फार्मूला फिल्मों से इतर बनी फिल्मों को पसन्द करते थे। उन्हें आविष्कार फिल्म के लिए भी फिल्मफेयर पुरस्कार प्रदान किया था। यह उनके करियर का अन्तिम फिल्मफेयर पुरस्कार था। इसके 31 वर्ष बाद उन्हें साल 2005 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया था। राजेश खन्ना ने अनेक अभिनेत्रियों के साथ काम किया, लेकिन शर्मिला टैगोर और मुमताज के साथ उनकी जोडी खासतौर पर लोकप्रिय हुई। उन्होंने शर्मिला के साथ आराधना, सफर, बदनाम, फरिश्ते, छोटी बहू, अमर प्रेम, राजा रानी और आविष्कार में जोडी बनाई, जबकि दो रास्ते, बंधन, सच्चा झूठा, दुश्मन, अपना देश, आपकी कसम, रोटी तथा प्रेम कहानी में मुमताज के साथ उनकी जोडी बहुत पसंद की गई। आराधना फिल्म का गाना "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू..." उनके करियर का सबसे बडा हिट गीत रहा। राजेश खन्ना की सफलता के पीछे संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर का अहम योगदान रहा है।

इनके बनाए और राजेश पर फिल्माए अधिकांश गीत हिट साबित हुए और आज भी सुने जाते हैं। किशोर ने 91 फिल्मों में राजेश को आवाज दी तो आरडी ने उनकी 40 फिल्मों में संगीत दिया। राजेश खन्ना ने वर्ष 1973 में खुद से उम्र में काफी छोटी नवोदित अभिनेत्री डिम्पल कपाडिया से विवाह किया और वे दो बेटियों टि्वंकल और रिंकी के माता-पिता बने। हालांकि राजेश और डिम्पल का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और कुछ समय के बाद वे अलग हो गए। बाद में उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा और वर्ष 1991 से 1996 के बीच नई दिल्ली से कांग्रेस के लोकसभा सांसद भी रहे। वर्ष 1994 में उन्होंने अभिनय की नई पारी शुरू की। उसके बाद उनकी आ अब लौट चलें (1999), क्या दिल ने कहा (2002), जाना (2006) और वफा (2008) में उन्होंने अभिनय किया। फिलहाल उन्हें टीवी पर हावेल्स फैन के विज्ञापन में देखा जा रहा है। इस विज्ञापन का निर्देशन आर.बल्की ने किया है।

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