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बुधवार, 18 जुलाई 2012

जन्मभूमि अमृतसर में रिश्तेदारों के जहन में राजेश खन्ना


राजेश खन्ना की मौत के बाद उनके जन्मभूमि के बारे में अमर उजाला लिखता है कि - 1970 के दशक के बॉलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना की मातृभूमि अमृतसर में जहां उनका परिवार रहता है, अब एक 'मंदिर' बन गया है। सिखों के इस पवित्र शहर की गली तिवाड़िया के जिस मकान में उनका परिवार रहता है, उसे कई साल पहले राजेश खन्ना ने बनवाया था। उन्होंने वहां एक मंदिर भी बनवाया। 

1970 के दशक में लाखों लोगों के दिलों पर राज करने वाले राजेश इस वर्ष जनवरी में अंतिम बार अपनी जन्मभूमि पर आए थे। वह नई दिल्ली से कांग्रेस के सांसद भी रहे। इस वर्ष की शुरुआत में पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार के लिए बुलाया गया था। 

राजेश के पोष्य भाई मुनी चंद खन्ना ने कहा, "वह जब यहां रहते थे, अक्सर क्रिकेट खेला करते थे। वह जब यहां थे, तब एक साधारण लड़का थे और ढेर सारी उपलब्धियां हासिल करने पर भी साधारण जीवन जीते थे।" राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसम्बर, 1942 को हुआ था। उन्हें चुन्नी लाल खन्ना और उनकी पत्नी लीला देवी ने गोद लिया था।

मुनी चंद के बेटे वरुण खन्ना ने कहा, "इस साल की शुरुआत में जब वह चुनाव प्रचार के लिए यहां आए थे, तब हम उनसे मिले थे। मुझे याद है कि जब हम छोटे थे, तब अपने पिता के साथ एक बार चाचा राजेश के मुम्बई वाले घर (आशीर्वाद) पर गए थे।" 

राजेश जहां पले-बढ़े, उनके रिश्तेदार अभी भी उसी जगह रह रहे हैं। उनके परिवार ने गुरुवार को होने वाले राजेश के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मुम्बई जाने के बारे में अभी नहीं सोचा है। 

दिवंगत सुपरस्टार का नाम पहले जतिन था। जब उन्होंने फिल्मों में जाने का फैसला लिया तब उनके चाचा ने उनका नाम बदलकर राजेश रख दिया। इसके लिए उन्होंने चाचा को धन्यवाद दिया था।

1965 में उन्होंने युनाइटेड प्रोड्यूसर्स एंड फिल्म फेयर की ओर से आयाजित अखिल भारतीय प्रतिभा खोज प्रतियोगिता जीती थी। 1966 में फिल्म 'आखिरी खत' के साथ उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा।

उनके दोस्त सतीश खन्ना भी उनके साथ अपनी किस्मत आजमाने फिल्मिस्तान पहुंचे थे। उन्होंने याद किया, "बम्बई (अब मुम्बई) पहुंचने पर हमने तीन दिन एक गुरुद्वारा में गुजारे। वे हमारे लिए मुश्किल भरे दिन थे।"

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 के आम चुनाव में राजेश खन्ना को अमृतसर लोकसभा सीट से क्रिकेट खिलाड़ी से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के टिकट की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं की।

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